Friday, April 19, 2019

शबे बरात

शबे बरात
_हदीस - मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "जब शाबान की 15वीं रात आये तो तुम लोग रात को इबादत करो और दिन को रोज़ा रखो,बेशक इस रात में खुदाये तआला आसमाने दुनिया पर तजल्ली फरमाता है और ऐलान करता है कि है कोई मगफिरत का तलबगार कि मैं उसे बख्श दूं है कोई रोज़ी मांगने वाला कि मैं उसे रोज़ी दूं है कोई बला व मुसीबत से छुटकारा मांगने वाला कि मैं उसे रिहाई दूं रात भर ये ऐलान होता रहता है यहां तक कि फज्र तुलु हो जाती है_ 

_*📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 398*_
_*📕 मिश्कात,सफह 115*_
_*📕 अत्तरगीब,जिल्द 2,सफह 52*_

_हदीस - उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि एक रात हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे पास से अचानक उठकर चले गए,जब मैंने उन्हें ना पाया तो उनकी तलाश में निकली तो आपको जन्नतुल बक़ी के कब्रिस्तान में पाया कि आपका सर मुबारक आसमान की तरफ था,जब हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा तो फरमाया कि ऐ आईशा क्या तुझे ये गुमान था कि अल्लाह का रसूल तुम पर जुल्म करेगा इस पर मैंने अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने सोचा कि शायद आप अपनी किसी और बीवी के पास तशरीफ ले गए हैं,तो आप फरमाते हैं कि आज शाबान की 15वीं रात है आज रात मौला तआला इतने लोगों को बख्शता है जिनकी तादाद बनी क़ल्ब की बकरियों से भी ज़्यादा होती है_ 

_*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 403*_
_*📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1389*_ 
_*📕 मिश्कात,सफह 114*_

_ⓩ सोचिये कि जब एक नबी कब्रिस्तान जा सकते हैं तो फिर उम्मती क्यों नहीं जा सकते,इस हदीस से कब्रिस्तान और मज़ारों पर जाना साबित हुआ_

_हदीस - हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान के अलावा सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान में रखते थे यहां तक कि कभी कभी पूरा महीना रोज़े से गुज़ार देते,सहाबिये रसूल हज़रत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम से इसकी वजह पूछी तो आप फरमाते हैं कि इस महीने में बन्दे के आमाल खुदा की तरफ उठाये जाते हैं तो मैं ये चाहता हूं कि जब मेरे आमाल खुदा की तरफ जायें तो मैं रोज़े से रहूं_ 

_*📕 निसाई,जिल्द 3,सफह 269*_

_हदीस - हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बेशक इस रात अल्लाह तआला तमाम मख्लूक़ की बख्शिश फरमाता है सिवाये शिर्क करने वाले और कीना रखने वालों के_ 

_*📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1390*_

_फुक़्हा - बाज़ रिवायतों में मुशरिक,जादूगर,काहिन,ज़िनाकार और शराबी भी आया है कि इनकी बख्शिश नहीं होगी या ये कि तौबा कर लें_ 

_*📕 बारह माह के फज़ायल,सफह 406*_

_फुक़्हा - जो इस रात में 2 रकात नमाज़ पढ़ेगा तो उसे 400 साल से भी ज़्यादा का सवाब अता किया जायेगा_ 

_*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 132*_

_फुक़्हा - हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि एक नफ्ल रोज़े का सवाब इतना है कि अगर पूरी रूए ज़मीन भर सोना दिया जाए तब भी पूरा ना होगा_ 

_*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 95*_

_फुक़्हा - अगर इस रात पानी में बैर की 7 पत्ती को जोश देकर उसे ग़ुस्ल करे तो इन शा अल्लाह तआला पूरा साल जादू और सहर से महफूज़ रहेगा_ 

_*📕 इस्लामी ज़िन्दगी,सफह 77*_

_ⓩ नमाज़ें इस रात में बहुत हैं और सबकी अपनी अपनी फज़ीलत है मगर याद रखें कि नफ्ल इबादतें जितनी भी हैं चाहे वो नमाज़ हो या रोज़ा उसी वक़्त क़ुबूल होगी जब कि फर्ज़ ज़िम्मे पर बाकी ना हो,लिहाज़ा जिसकी नमाज़ क़ज़ा हो वो क़ज़ा-ए उमरी पढ़े और जिनका रमज़ान का रोज़ा क़ज़ा हो वो इस रोज़े के बदले रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नियत करे,जिनकी बहुत ज़्यादा नमाज़ें क़ज़ा हो उसको आसानी से अदा करने के लिए सरकारे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_

_फुक़्हा - एक दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ और इशा की वित्र,नियत यूं करें सब में पहली वो फज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई अल्लाहु अकबर कहकर नियत बांध लें युंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र सिर्फ नमाज़ो का नाम बदलता रहे,क़याम में सना छोड़ दे और बिस्मिल्लाह से शुरू करे,बाद सूरह फातिहा के कोई सूरह मिलाकर रुकू करे और रुकू की तस्बीह सिर्फ 1 बार पढ़े फिर युंही सजदों में भी 1 बार ही तस्बीह पढ़े इस तरह दो रकात पर क़ायदा करने के बाद ज़ुहर अस्र मग़रिब और इशा की तीसरी और चौथी रकात के क़याम में सिर्फ 3 बार सुब्हान अल्लाह कहे और रुकू करे आखरी क़ायदे में अत्तहयात के बाद दुरूद इब्राहीम और दुआए मासूरह की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यदना मुहम्मदिंव व आलिही कहकर सलाम फेर दें,वित्र की तीनो रकात में सूरह मिलेगी मगर दुआये क़ुनूत की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मग़ फिरली कह लेना काफी है_ 

_*📕 अलमलफूज़,

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