सूफी की तारीफ
हज़रत दाता गंज बख्श رحمتہ اللہ علیہ शाम के वक़्त आम मुरीदों के लिए दर्सो तदरीस का एहतिमाम करते थे- लोग आते थे सवाल करते थे और इल्म की प्यास बुझाते थे- आप एक रोज़ मुरीदों के दरमियान बैठे थे,लाहौर का एक मुरीद आया और आपसे पूछा:
"हुज़ूर अल्लाह की बारगाह में अफज़ल तरीन इबादत क्या है-"
हज़रत दाता साहब ने मुस्कुरा कर देखा और फरमाया:
"खैरात"
उस शख्स ने दोबारा अर्ज़ किया:
"और अफज़ल तरीन ख़ैरात क्या है?"
आप رحمتہ اللہ علیہ ने फ़रमाया:
"मुआफ कर देना-"
फिर आप رحمتہ اللہ علیہ चंद लम्हे रुक कर यूं गोया हुए:
"दिल से मुआफ कर देना दुनियां की सबसे बड़ी ख़ैरात है और अल्लाह को ये ख़ैरात सबसे ज़्यादा पसंद है- आप दूसरों को मुआफ करते चले जाओ, अल्लाह आपके दर्जे बलंद करता चला जाएगा-"
आप رحمتہ اللہ علیہ फरमाते:
"तसव्वुफ की दर्सगाह में सूफी उस वक़्त सूफी बनता है जब उसका दिल नफरत, गुस्से और इंतिक़ाम के ज़हर से पाक हो जाता है और वो मुआफी के साबुन से अपने दिल की सारी कदूरतें धो लेता है-"
अहले तसव्वुफ यहां तक कहते हैं कि क़ातिल को सूफी का खून तक मुआफ होता है और ये मुआफी की वो ख़ैरात है जो सूफिया ए किराम दे देकर बलंद से बलंदतर होते चले जाते हैं-उनके दर्जे बढ़ते चले जाते हैं..!!!
अल्लाह पाक हम सबको नेक राह पर चलने की तौफीक अता फरमाए आमीन
No comments:
Post a Comment