Friday, May 29, 2020
इस्तिगफार क्या हे
*इस्तिगफार क्या हे,उसके कलीमात् कोन्से हें और कब करना चाहिये?*
*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
*नहमदुहु व नुसल्ली अला रसूलिहिल करीम*
*मग़फिरत तलब करना,जब इंसान से गुनाह हो जाए और इंसान उस पर नादीम (शरमिंदा) हो गया कि मैंने अल्लाह तआला की नाफरमानी की है फिर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगने लगा तो शरीयत में उसे इस्तिगफार कहा जाता है*
وَانِ اسْتَغْفِرُوْا رَبَّکُمْ ثُمَّ تُوْبُوْٓا اِلَیْهِ یُمَتِّعْکُمْ مَّتَاعًا حَسَنًا.
*और यह कि तुम अपने रब से मगफिरत तलब करो फिर तुम उसके हुजूर तौबा करो वह तुम्हें वकते मुअय्यन तक अच्छी मताअ से लुत्फ अन्दौज रखेगा*(सु,हुद)
*जो शख्स चाहता है कि कयामत के दिन उसका आमाल नामा उसको खुश कर दे तो उसे चाहिए कि कसरत के साथ इस्तिगफार करे*(हदीस)
*इस्तिगफार के लिए कोई वक्त मुतय्यन नहीं है जब भी गुनाह हो जाए तो फौरन अल्लाह की बारगाह में सच्चे दिल से ईस्तिगफार किया जाए*
*इस्तिगफार के आसान कलमात यह हैं*
*अस्तगफिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली जम्बिव व अतुबू इलयही*
*रब्बीग फिर वरहम व अन्त खैरूर राहीमिन*
*अपने गुनाहों को याद करके सच्चे दिल से इनमें से किसी एक कलमे की रोजाना तस्बीह करते रहें*
*मुहम्मद इमरान पटेल*
खादिम,मदीना मस्जिद
लुसाका (ज़ाम्बीया)
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Thursday, May 28, 2020
Wednesday, May 27, 2020
Tuesday, May 26, 2020
Friday, May 22, 2020
Thursday, May 21, 2020
Wednesday, May 20, 2020
Monday, May 18, 2020
शबे क़द्र दुआ की रात
शबे क़द्र ये रात दुआ की क़बूलीयत की रात हे अपने लिये दोस्तो अहबाब के लिये वालिदेन के लीये और तमाम गुजरे हुवे लोगों के लिये मग़फिरत की दुआ करनी चाहिये। हज़रत सूफियान सौरी के नज़दीक इस रात में दुआ में मशगुल होना सब से बेहतर हे।दुआओं में सब से बेहतर वो दुआ हे जो हज़रत आयशा से मनकुल हे
اللّٰھُمَّ إِ نَّکَ عَفُوٌّ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عَنِّیْ‘‘ (ترمذی رقم ۳۸۲۲)
ऐ अल्लाह तु माफ करनेवाला हे और माफ करने को पसन्द करता हे तो मुझे भी माफ फरमा दे.
Saturday, May 16, 2020
Friday, May 15, 2020
Thursday, May 14, 2020
नियत की बरकत
हज़रते अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मुसलमान की नियत उसके अमल से बेहतर है
📕 तिबरानी बा हवाला इज़ानुल अज्रे फी अज़ानिल क़ब्रे,सफह 25
*फुक़्हा* - जो शख्स नियत का इल्म जानता है वो एक काम करते हुए भी कई सारे कामों का सवाब पा सकता है,मसलन एक शख्स नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद चला और सिर्फ नमाज़ की नियत की तो बिला शुबह बेहतर है कि उसके हर क़दम के बदले एक नेकी मिलेगी और एक एक गुनाह मिटता चलेगा,मगर जो शख्स इल्मे नियत जानता होगा वो सिर्फ नमाज़ के लिए मस्जिद जाने में ही कितनी नेकियां इकट्ठी कर सकता है,आईए देखते हैं*
1. अस्ल मक़सद नमाज़ के लिए जा रहा हूं
2. मस्जिद की ज़ियारत करूंगा
3. इस्लाम की निशानी ज़ाहिर करूंगा
4. मुअज़्ज़िन का क़ौल क़ुबूल करूंगा
5. मस्जिद से कूड़ा कचरा दूर करूंगा
6. एतेकाफ करूंगा
7. फरमाने इलाही पर अमल करने जा रहा हूं
8. वहां जो आलिम मिलेगा उससे दीनी मसअला सीखूंगा
9. ना अहल को इल्म सिखाऊंगा
10. जो मेरे बराबर इल्म वाला होगा उससे इल्म की चर्चा करूंगा
11. आलिम की ज़ियारत करूंगा
12. नेक मुसलमानों का दीदार करूंगा
13. दोस्तों से मुलाकात करूंगा
14. मुसलमानों से मिलूंगा
15. अगर कोई रिश्तेदार मिल गया तो उससे भी हाल चाल पूछूंगा
16. अहले इस्लाम को सलाम करूंगा
17. उनसे मुसाफा करूंगा
18. जो सलाम करेगा उसका जवाब दूंगा
19. जमाअत से नमाज़ पढ़कर उसकी बरकतें हासिल करूंगा
20. मस्जिद में दाख़िल होते वक़्त दाहिना पैर पहले दाखिल करूंगा और बिस्मिल्लाह शरीफ पढूंगा
21. हुज़ूर पर दुरूद पढूंगा
22. दाखिले की दुआ पढ़ूंगा
بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك واعلى عباد الله اصالحىن اللهم افتح لى ابواب رحمتك نوىت سنت اعتكاف
23. निकलते वक़्त बायां पैर पहले निकालूंगा और दुआ पढ़ूंगा
بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك واعلى عباد الله اصالحىن اللهم انى اسًلك من فضلك
24. बीमार मिल गया तो उसकी इयादत करूंगा
25. अगर कोई जनाज़ा मिल गया तो ताज़ियत करूंगा
26. अगर वक़्त मिला तो कब्रिस्तान तक जाऊंगा
26. जो सवाल करेगा उसका जवाब दूंगा
27. अच्छी बातों का हुक्म दूंगा
28. बुरी बातों से रोकूंगा
29. अगर वुज़ू का पानी ना हुआ तो लोगों को वुज़ू का पानी दूंगा
30. अगर मुअज़्ज़िन न हुआ तो अज़ान व तकबीर कहूंगा
31. जो भटका हुआ मिलेगा उसे रास्ता बताऊंगा
32. नाबीना की दस्तगीरी करूंगा
33. दो मुसलमानो में झगड़ा हुआ तो सुलह कराऊंगा
34. रास्ते में कोई अदबी कागज़ मिला तो उठाकर उसे रखूंगा
*ⓩ वग़ैरह वग़ैरह,अब अगर निकलते वक़्त इन सारी बातों की नियत कर ली तो एक ही वक़्त में हर क़दम के बदले जितनी नियत उतनी नेकियां,अगर कोई काम नहीं भी किया तो भी नेकियों में कमी नहीं होगी और अगर सारे काम कर लिए तो उसका जितना सवाब है वो अलग,ना जाने किस क़दर नेकियां हासिल होंगी इसका अंदाजा लगाना इंसान के बस के बाहर है,नियत की एक ईमान अफरोज़ और इबरतनाक हिकायत पढ़ लीजिए इं शा अल्लाह नियत की बरकत भी समझ जाएंगे*
*हिकायत* - दो भाई थे दोनों एक ही मकान में रहा करते थे बड़ा ऊपर की मंज़िल में और छोटा नीचे की मंज़िल में,बड़ा बहुत ही नेक और परहेज़गार और छोटा निहायत ही अय्याश और बदकार था,इक रोज़ बड़े भाई के दिल में वस्वसा पैदा हुआ कि मैंने सारी ज़िन्दगी इबादत में गुज़ार दी और दुनिया के बारे में कुछ सोचा ही नहीं,खैर अभी तो बहुत उम्र बाक़ी है चलो कुछ ऐशो इशरत से ज़िन्दगी गुज़ारी जाये मरने से पहले फिर तौबा कर लूंगा ये सोचकर वो अपने अय्याश भाई से मिलने के लिए नीचे की तरफ चला,इधर छोटे के दिल में रहमते इलाही ने जोश मारा और वो बड़े भाई की नेकियों को सामने रखकर अपने ऊपर मलामत करने लगा और रोने लगा कि मैं किस क़दर बद नसीब हूं कि मेरा भाई इतना नेक आदमी है और मैं इतना बदकार,चलो अभी भी देर नहीं हुई है अभी मैं उसके हाथों पर अपने तमाम गुनाहों से तौबा करता हूं और ये सोचकर वो अपने बड़े भाई से मिलने के लिए ऊपर की मंज़िल की जानिब चला,दोनों एक ही सीढ़ी पर थे कि अचानक बड़े भाई का पैर फिसला और वो छोटे पर गिरा और दोनों वहीं इन्तेक़ाल कर गए,रहमतो अज़ाब के फरिश्ते आ गए,अब उन दोनों की रूह ले जाने के लिए वहां फरिश्तो में बहस होने लगी,बड़े भाई को नेकोकार फरिश्ते ले जाना चाहते थे मगर अज़ाब के फरिश्ते रोक रहे थे और छोटे को अज़ाब के फरिश्ते ले जाना चाह रहे थे तो रहमत के फरिश्ते आड़ बन रहे थे कि मुआमला बारगाहे खुदावन्दी में पहुंचा,मौला फरमाता है कि दोनों की आखिरी नियत जो थी उसी पर सारा हिसाब किताब होगा,तो बड़े की नियत बदकारी करने की निकली और छोटे की नियत तौबा करने की,लिहाज़ा बड़े भाई को उसकी बुरी नियत की नहूसत की वजह से जहन्नम ले जाया गया और छोटे भाई को उसकी नेक नियती की बिना पर जन्नत का परवाना मिला
📕 रौज़ुल फ़ाइक,सफह 10
*ⓩ ये है नियत,और ये होता है नियत का जलवा,लिहाज़ा अपनी नियत हमेशा नेकोकार की ही रखें क्योंकि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि*
*हदीस* - एक शख्स जहन्नमियों वाले काम करता है हालांकि वो जन्नती होता है और एक शख्स जन्नतियों वाले काम करता है मगर वो जहन्नमी होता है क्योंकि आमाल का सारा दारोमदार खात्मे पर है
📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 961
📕 तिबरानी बा हवाला इज़ानुल अज्रे फी अज़ानिल क़ब्रे,सफह 25
*फुक़्हा* - जो शख्स नियत का इल्म जानता है वो एक काम करते हुए भी कई सारे कामों का सवाब पा सकता है,मसलन एक शख्स नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद चला और सिर्फ नमाज़ की नियत की तो बिला शुबह बेहतर है कि उसके हर क़दम के बदले एक नेकी मिलेगी और एक एक गुनाह मिटता चलेगा,मगर जो शख्स इल्मे नियत जानता होगा वो सिर्फ नमाज़ के लिए मस्जिद जाने में ही कितनी नेकियां इकट्ठी कर सकता है,आईए देखते हैं*
1. अस्ल मक़सद नमाज़ के लिए जा रहा हूं
2. मस्जिद की ज़ियारत करूंगा
3. इस्लाम की निशानी ज़ाहिर करूंगा
4. मुअज़्ज़िन का क़ौल क़ुबूल करूंगा
5. मस्जिद से कूड़ा कचरा दूर करूंगा
6. एतेकाफ करूंगा
7. फरमाने इलाही पर अमल करने जा रहा हूं
8. वहां जो आलिम मिलेगा उससे दीनी मसअला सीखूंगा
9. ना अहल को इल्म सिखाऊंगा
10. जो मेरे बराबर इल्म वाला होगा उससे इल्म की चर्चा करूंगा
11. आलिम की ज़ियारत करूंगा
12. नेक मुसलमानों का दीदार करूंगा
13. दोस्तों से मुलाकात करूंगा
14. मुसलमानों से मिलूंगा
15. अगर कोई रिश्तेदार मिल गया तो उससे भी हाल चाल पूछूंगा
16. अहले इस्लाम को सलाम करूंगा
17. उनसे मुसाफा करूंगा
18. जो सलाम करेगा उसका जवाब दूंगा
19. जमाअत से नमाज़ पढ़कर उसकी बरकतें हासिल करूंगा
20. मस्जिद में दाख़िल होते वक़्त दाहिना पैर पहले दाखिल करूंगा और बिस्मिल्लाह शरीफ पढूंगा
21. हुज़ूर पर दुरूद पढूंगा
22. दाखिले की दुआ पढ़ूंगा
بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك واعلى عباد الله اصالحىن اللهم افتح لى ابواب رحمتك نوىت سنت اعتكاف
23. निकलते वक़्त बायां पैर पहले निकालूंगा और दुआ पढ़ूंगा
بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك واعلى عباد الله اصالحىن اللهم انى اسًلك من فضلك
24. बीमार मिल गया तो उसकी इयादत करूंगा
25. अगर कोई जनाज़ा मिल गया तो ताज़ियत करूंगा
26. अगर वक़्त मिला तो कब्रिस्तान तक जाऊंगा
26. जो सवाल करेगा उसका जवाब दूंगा
27. अच्छी बातों का हुक्म दूंगा
28. बुरी बातों से रोकूंगा
29. अगर वुज़ू का पानी ना हुआ तो लोगों को वुज़ू का पानी दूंगा
30. अगर मुअज़्ज़िन न हुआ तो अज़ान व तकबीर कहूंगा
31. जो भटका हुआ मिलेगा उसे रास्ता बताऊंगा
32. नाबीना की दस्तगीरी करूंगा
33. दो मुसलमानो में झगड़ा हुआ तो सुलह कराऊंगा
34. रास्ते में कोई अदबी कागज़ मिला तो उठाकर उसे रखूंगा
*ⓩ वग़ैरह वग़ैरह,अब अगर निकलते वक़्त इन सारी बातों की नियत कर ली तो एक ही वक़्त में हर क़दम के बदले जितनी नियत उतनी नेकियां,अगर कोई काम नहीं भी किया तो भी नेकियों में कमी नहीं होगी और अगर सारे काम कर लिए तो उसका जितना सवाब है वो अलग,ना जाने किस क़दर नेकियां हासिल होंगी इसका अंदाजा लगाना इंसान के बस के बाहर है,नियत की एक ईमान अफरोज़ और इबरतनाक हिकायत पढ़ लीजिए इं शा अल्लाह नियत की बरकत भी समझ जाएंगे*
*हिकायत* - दो भाई थे दोनों एक ही मकान में रहा करते थे बड़ा ऊपर की मंज़िल में और छोटा नीचे की मंज़िल में,बड़ा बहुत ही नेक और परहेज़गार और छोटा निहायत ही अय्याश और बदकार था,इक रोज़ बड़े भाई के दिल में वस्वसा पैदा हुआ कि मैंने सारी ज़िन्दगी इबादत में गुज़ार दी और दुनिया के बारे में कुछ सोचा ही नहीं,खैर अभी तो बहुत उम्र बाक़ी है चलो कुछ ऐशो इशरत से ज़िन्दगी गुज़ारी जाये मरने से पहले फिर तौबा कर लूंगा ये सोचकर वो अपने अय्याश भाई से मिलने के लिए नीचे की तरफ चला,इधर छोटे के दिल में रहमते इलाही ने जोश मारा और वो बड़े भाई की नेकियों को सामने रखकर अपने ऊपर मलामत करने लगा और रोने लगा कि मैं किस क़दर बद नसीब हूं कि मेरा भाई इतना नेक आदमी है और मैं इतना बदकार,चलो अभी भी देर नहीं हुई है अभी मैं उसके हाथों पर अपने तमाम गुनाहों से तौबा करता हूं और ये सोचकर वो अपने बड़े भाई से मिलने के लिए ऊपर की मंज़िल की जानिब चला,दोनों एक ही सीढ़ी पर थे कि अचानक बड़े भाई का पैर फिसला और वो छोटे पर गिरा और दोनों वहीं इन्तेक़ाल कर गए,रहमतो अज़ाब के फरिश्ते आ गए,अब उन दोनों की रूह ले जाने के लिए वहां फरिश्तो में बहस होने लगी,बड़े भाई को नेकोकार फरिश्ते ले जाना चाहते थे मगर अज़ाब के फरिश्ते रोक रहे थे और छोटे को अज़ाब के फरिश्ते ले जाना चाह रहे थे तो रहमत के फरिश्ते आड़ बन रहे थे कि मुआमला बारगाहे खुदावन्दी में पहुंचा,मौला फरमाता है कि दोनों की आखिरी नियत जो थी उसी पर सारा हिसाब किताब होगा,तो बड़े की नियत बदकारी करने की निकली और छोटे की नियत तौबा करने की,लिहाज़ा बड़े भाई को उसकी बुरी नियत की नहूसत की वजह से जहन्नम ले जाया गया और छोटे भाई को उसकी नेक नियती की बिना पर जन्नत का परवाना मिला
📕 रौज़ुल फ़ाइक,सफह 10
*ⓩ ये है नियत,और ये होता है नियत का जलवा,लिहाज़ा अपनी नियत हमेशा नेकोकार की ही रखें क्योंकि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि*
*हदीस* - एक शख्स जहन्नमियों वाले काम करता है हालांकि वो जन्नती होता है और एक शख्स जन्नतियों वाले काम करता है मगर वो जहन्नमी होता है क्योंकि आमाल का सारा दारोमदार खात्मे पर है
📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 961
الہی طلب کریں ہم سب
الہی طلب کریں ہم سب غریب
ہو روزوں کی برکت سے جنت نصیب
تو دکھلا دے جنت میں دیدار کو
ہوئے تازگی سب دل و جان کو
دے برکت تراویح بخش دے سب گناہ
ہو امت محمد کو تیری پناہ
کریمی کریمی کریمی کریم
رحیمی رحیمی رحیمی رحیمی
راہ ایسی تو کر عطا
جس سے راضی رہے تو اور مصطفی
مصطفی پر جان و دل قربان ہو
جب تلک اس تن کے اندر جان ہو
مصطفی پر ہو درود و سلام
ان کی آل اور اصحاب پر بھی ہو تمام
رونق اسلام کے سامان پیدا کر
الٰہی رونقِ اسلام کا سامان پیدا کر
دلوں میں مومنوں کے قوتِ ایمان پیدا کر
جو دل مردہ ہیں اور غافل نمازِ پنجگانہ سے
الہی اپنی قدرت سے تو ان میں جان پیدا کر
الہی قوم کی حالت دگر گوں ہوتی جاتی ہیں
جہاں میں پھر کوئ صدیق سا انسان پیدا کر
خدا وندا اٹھا جاتا ہے اب انصاف دنیا سے
عمر جیسا کوئ عادل عظیم الشان پیدا کر
غریبوں اور یتیموں کا کوئ حامی نہیں مولا
سخاوت کرنے والا پھر کوئ عثمان پیدا کر
ہلا دے نعرۓ تکبیر سے سارے زمانے کو
علی جیسا دلاور پھر کوئ انسان پیدا کر
تمنا ہے یہی سب کی پہوچ جائیں مدینے کو
دعا مقبول ہونے کا کوئ سامان پیدا کر
Wednesday, May 13, 2020
Monday, May 11, 2020
हज़रत ख़्वाजा बख़्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह की वसीयत
हज़रत ख़्वाजा बख़्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह का जब इन्तेक़ाल हुआ तो उनकी नमाज़े जनाज़ा के लिए लोग इकठ्ठा हुए। भीड़ में ऐलान हुआ की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने के लिए कुछ शर्तें हैं जिनकी वसीयत हज़रत ने की थी:
(1) मेरी नमाज़े जनाज़ा वो शख़्स पढ़ायेगा जिसने कभी भी बग़ैर वज़ू आसमान की तरफ़ न देखा हो।
(2) मेरी नमाज़े जनाज़ा वो पढ़ाएगा जिसने कभी किसी पराई औरत पर निगाह न डाली हो ।
(3) मेरी नमाज़े जनाज़ा वो शख़्स पढ़ायेगा जिसकी अस्र की 4 रक्अत सुन्नत कभी न छूटी हो।
(4) मेरी नमाज़े जनाज़ा वो शख़्स पढ़ायेगा जिसकी तहज्जुद की नमाज़ कभी न छूटी हो
जैसे ही भीड़ में ये ऐलान हुआ सारी भीड़ में एक सन्नाटा छा गया।
सब एक दुसरे का मुँह देखने लगे। सबके क़दम ठिठक गए। आँखे टकटकी लगाए हुए उस शख़्स का इंतज़ार करने लगीं की कौन है वो शख़्स! वक़्त गुज़रता जा रहा था लाखों की भीड़ मगर कोई क़दम आगे नहीं बढ़ा रहे थे। सारे लोग परेशान । सुबह से शाम होने को आने लगी मगर कोई क़दम आगे न बढ़ा।
◆ बड़े-बड़े उलेमा, मोहद्दिस, मुफ़स्सिर, दायी, सब ख़ामोश सबकी नज़रें नीची, कोई नहीं था जो इन चारों शर्तों पर खरा उतरता। एक अजीब बेचैनी थी लोगों में।
◆ अचानक भीड़ को चीरता हुआ एक नक़ाबपोश आगे बढ़ा और बोला "सफ़ें सीधी की जाएं मेरे अन्दर ये चारों शर्तें पायी जाती हैं।"
◆ फिर नमाज़े जनाज़ा हुई लोग बेचैन थे उस नेक और परहेज़गार इन्सान की शक्ल देखने के लिए.
नमाज़ ख़त्म होने के बाद वो शख़्स मुड़ा और अपने चेहरे से कपड़ा हटाया, लोगों की हैरत की इन्तेहा न थी, अरे ये तो बादशाहे वक़्त हैं ! अरे ये तो सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमस (जिन्हें आज इतिहास की किताबो में सुल्तान इल्तुतमिश के नाम से जाना जाता है जो 1210 -1236 तक हिन्द के बादशाह रहे इन्ही की बेटी रजिया सुल्ताना थी) हैं !
◆ बस यही अल्फाज़ हर एक की ज़ुबान पर थे। और इधर ये नेक और पाक दामन बादशाह दहाड़े मार कर रो रहा था और कह रहा था "आपने मेरा राज़ फ़ाश कर दिया"
"आपने मेरा राज़ फ़ाश कर दिया। वरना कोई मुझे नहीं जानता था"
मुसलमानो, ये है हमारी तारीख़ और ये हैं हमारे नेक और पाकदामन हुक्मरान।
◆ अपनी ज़िन्दगी इन लोगों की तरह जीने की कोशिश करो, कल लोग थोड़ा खाकर भी अल्हम्दुलिल्लाह कहते थे, आज अच्छा और ज़्यादा खाकर भी कहते हैं मज़ा नहीं आया।
◆ कल इन्सान शैतान के कामों से तौबा करता था, आज शैतान इन्सान के कामों से तौबा करता है।
◆ कल लोग अल्लाह के दीन के लिए जान देते थे, आज लोग माल के लिए जान देते हैं।
◆ कल घरों से क़ुरआन की तिलावत की आवाज़ आती थी, आज घरों से गाने की आवाज़ आती है।
◆ कल औलाद माँ-बाप का कहा मानती थी, आज माँ-बाप औलाद के कहने के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते है।
◆ कल लोग क़ुरआन व हदीस के मुताबिक ज़िंदगी गुज़ारते थे, आज लोग माडर्न फ़ैशन के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते हैं ।
◆ कल मुसलमान दयानतदारी, सच्चाई और हिम्मत व बहादुरी के लिए मशहूर था, आज मुसलमान बदअखलाक और बद किरदार के लिए बदनाम है।
◆ कल लोग रात-दिन दीन सीखने और अल्लाह की इबादत में गुजारते थे, आज लोग अपना रात-दिन शोहरत और माल व दौलत कमाने में गुजारते है।
◆ कल लोग दीन के लिए सफर करते थे, आज लोग गुनाहों के लिए सफर करते है।
◆ कल लोग अल्लाह की रज़ा के लिए हज करते थे, आज लोग नाम व शोहरत के लिए हज करते है।
◆ अल्लाह से दुआ है की - " ऐ दिलों के फेरने वाले हमारे दिलों को आज के बजाए आख़ेरत की तरफ़ फेर दे, ऐ अल्लाह जो हमारे हक़ में बेहतर हो ऐसा हमें अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमा, हमारी बुराईयां हमसे दूर फ़रमा।"
💛आमीन💛
(1) मेरी नमाज़े जनाज़ा वो शख़्स पढ़ायेगा जिसने कभी भी बग़ैर वज़ू आसमान की तरफ़ न देखा हो।
(2) मेरी नमाज़े जनाज़ा वो पढ़ाएगा जिसने कभी किसी पराई औरत पर निगाह न डाली हो ।
(3) मेरी नमाज़े जनाज़ा वो शख़्स पढ़ायेगा जिसकी अस्र की 4 रक्अत सुन्नत कभी न छूटी हो।
(4) मेरी नमाज़े जनाज़ा वो शख़्स पढ़ायेगा जिसकी तहज्जुद की नमाज़ कभी न छूटी हो
जैसे ही भीड़ में ये ऐलान हुआ सारी भीड़ में एक सन्नाटा छा गया।
सब एक दुसरे का मुँह देखने लगे। सबके क़दम ठिठक गए। आँखे टकटकी लगाए हुए उस शख़्स का इंतज़ार करने लगीं की कौन है वो शख़्स! वक़्त गुज़रता जा रहा था लाखों की भीड़ मगर कोई क़दम आगे नहीं बढ़ा रहे थे। सारे लोग परेशान । सुबह से शाम होने को आने लगी मगर कोई क़दम आगे न बढ़ा।
◆ बड़े-बड़े उलेमा, मोहद्दिस, मुफ़स्सिर, दायी, सब ख़ामोश सबकी नज़रें नीची, कोई नहीं था जो इन चारों शर्तों पर खरा उतरता। एक अजीब बेचैनी थी लोगों में।
◆ अचानक भीड़ को चीरता हुआ एक नक़ाबपोश आगे बढ़ा और बोला "सफ़ें सीधी की जाएं मेरे अन्दर ये चारों शर्तें पायी जाती हैं।"
◆ फिर नमाज़े जनाज़ा हुई लोग बेचैन थे उस नेक और परहेज़गार इन्सान की शक्ल देखने के लिए.
नमाज़ ख़त्म होने के बाद वो शख़्स मुड़ा और अपने चेहरे से कपड़ा हटाया, लोगों की हैरत की इन्तेहा न थी, अरे ये तो बादशाहे वक़्त हैं ! अरे ये तो सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमस (जिन्हें आज इतिहास की किताबो में सुल्तान इल्तुतमिश के नाम से जाना जाता है जो 1210 -1236 तक हिन्द के बादशाह रहे इन्ही की बेटी रजिया सुल्ताना थी) हैं !
◆ बस यही अल्फाज़ हर एक की ज़ुबान पर थे। और इधर ये नेक और पाक दामन बादशाह दहाड़े मार कर रो रहा था और कह रहा था "आपने मेरा राज़ फ़ाश कर दिया"
"आपने मेरा राज़ फ़ाश कर दिया। वरना कोई मुझे नहीं जानता था"
मुसलमानो, ये है हमारी तारीख़ और ये हैं हमारे नेक और पाकदामन हुक्मरान।
◆ अपनी ज़िन्दगी इन लोगों की तरह जीने की कोशिश करो, कल लोग थोड़ा खाकर भी अल्हम्दुलिल्लाह कहते थे, आज अच्छा और ज़्यादा खाकर भी कहते हैं मज़ा नहीं आया।
◆ कल इन्सान शैतान के कामों से तौबा करता था, आज शैतान इन्सान के कामों से तौबा करता है।
◆ कल लोग अल्लाह के दीन के लिए जान देते थे, आज लोग माल के लिए जान देते हैं।
◆ कल घरों से क़ुरआन की तिलावत की आवाज़ आती थी, आज घरों से गाने की आवाज़ आती है।
◆ कल औलाद माँ-बाप का कहा मानती थी, आज माँ-बाप औलाद के कहने के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते है।
◆ कल लोग क़ुरआन व हदीस के मुताबिक ज़िंदगी गुज़ारते थे, आज लोग माडर्न फ़ैशन के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते हैं ।
◆ कल मुसलमान दयानतदारी, सच्चाई और हिम्मत व बहादुरी के लिए मशहूर था, आज मुसलमान बदअखलाक और बद किरदार के लिए बदनाम है।
◆ कल लोग रात-दिन दीन सीखने और अल्लाह की इबादत में गुजारते थे, आज लोग अपना रात-दिन शोहरत और माल व दौलत कमाने में गुजारते है।
◆ कल लोग दीन के लिए सफर करते थे, आज लोग गुनाहों के लिए सफर करते है।
◆ कल लोग अल्लाह की रज़ा के लिए हज करते थे, आज लोग नाम व शोहरत के लिए हज करते है।
◆ अल्लाह से दुआ है की - " ऐ दिलों के फेरने वाले हमारे दिलों को आज के बजाए आख़ेरत की तरफ़ फेर दे, ऐ अल्लाह जो हमारे हक़ में बेहतर हो ऐसा हमें अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमा, हमारी बुराईयां हमसे दूर फ़रमा।"
💛आमीन💛
Sunday, May 10, 2020
Thursday, May 7, 2020
Wednesday, May 6, 2020
Tuesday, May 5, 2020
Monday, May 4, 2020
Sunday, May 3, 2020
Saturday, May 2, 2020
Friday, May 1, 2020
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