मदीने के वासीफ़ नबी और वली है
जहां के हैं जाइर फकीरो गनी है
सलामो का नगमा जहां गूंजे हर आन
वह जन्नत की क्यारी नबी की गली है
शरफ़ जिस को हासिल हुआ है शिफा का
मुकद्दस वो खाके मदीना बनी है
जमीं को जो निस्बत हुई मुस्तफा से
वो दुनिया में जन्नत की क्यारी बनी है
दरे मुस्तफा पे जो मुजरिम है आया
स्याही गुनाहों की उससे झड़ी है
वो रहमत के बादल मदीने में बरसे
दुआ अर्शने जब नबी की सुनी है
सलामों का तोहफा दुरूदों का नगमा
के लेकर क़तारें मलक की लगी है
है जात उनकी कासिम ये फरमान उनका
अता ए इलाही का जो दर बनी है
न होगा कोई मुझसे बढ़कर भी आसी
शफाअत कि तुझसे तवकको लगी है
मदीने में चलना अदब से ए इमरान
जहां पर मलाइक की आमद लगी है
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